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घण्टों मुझसे बतियाता है रात गए / सूफ़ी सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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घण्टों मुझसे बतियाता है रात गए ।
मुझमें कोई जग जाता है रात गए ।
सूने बदन में रौनक-सी आ जाती है,
कौन रौशनी बरसाता है रात गए ।
जाने कितने हुनर साथ में लाता है,
हर उलझन को सुलझाता है रात गए ।
हवा-सा हल्का बदन मेरा हो जाता है,
रूह में कोई बस जाता है रात गए ।
पलकें जब चुप-चाप बन्द हो जाती हैं,
मुझको वही नज़र आता है रात गए ।
मेरे हर इक दर्द को ग़ज़ल बना देता,
फिर ज़ख़्मों को सहलाता है रात गए ।