Last modified on 11 अक्टूबर 2017, at 13:52

दिल के रिश्ते दिमाग़ तक पहुँचे / सुभाष पाठक 'ज़िया'

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:52, 11 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभाष पाठक 'ज़िया' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दिल के रिश्ते दिमाग़ तक पहुँचे
साफ़ चेहरे भी दाग़ तक पहुँचे

बाद इसके चराग़ लौ देगा,
पहले इक लौ चराग़ तक पहुँचे

जज़्ब रग रग में हो चुका था वो
देर से हम फ़राग़ तक पहुँचे

साथ रहते हैं कैसे ख़ारो गुल
देखना था सो बाग़ तक पहुँचे

मुझको मेरा वजूद हो हासिल
कोई मेरे सुराग़ तक पहुँचे

मय न पहुँची हमारे होंटों तक
बारहा हम अयाग़ तक पहुँचे

होश आ जाये ऐ 'ज़िया' इसको
दिल जो मेरा दिमाग़ तक पहुँचे