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318 / हीर / वारिस शाह

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जोगी मंग के पिंड तयार होया आटा मेलके खपरा पूरया ए
किसे हस के रूग चा पाया ए किसे जोगी नूं चा वडूरया ए
वारस खेड़यां दी झात पाईया सू जिवें चैधवी दा चंद पूरया ए

शब्दार्थ
<references/>