भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अन्तर के भाव सजग होंगे / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:25, 20 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’ |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अन्तर के भाव सजग होंगे
तुम रहो नयन-पथ पर मेरे
तेरी गुरूता में यह मेरी
लघुता पल में खो जायेगी
जीवन संस्कृत हो जायेगा
साधना सफल हो जायेगी
फिर तुमसे नहीं विलग होंगे
तुम रहो स्मरण-पथ पर मेरे
अन्तर के मैल मिटाने को
युग युग से आकुल मन मेरा
तेरे शुभ दर्शन पाने को
है उत्सुक आज नयन मेरा
आलोकित मेरे मग होंगे
तुम रहो श्रवण-पथ पर मेरे
अपने को आप भुला गा
तेरे अनुभव का बल पाकर
मेरा विश्वास अटल होगा
अपने पर, तुम पर, आशा पर
दृढ मेरे दोनों पग होंगे
तुम रहो मरण-पथ पर मेरे
अन्तर के भाव सजग होंगे
तुम रहो नयन पथ पर मेरे