भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काम अपनों का सदा करता रहा / मृदुला झा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:26, 4 मई 2019 का अवतरण (Rahul Shivay ने काम अपनों का सदा करता रहाए / मृदुला झा पृष्ठ काम अपनों का सदा करता रहा / मृदुला झा पर स्थ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

और सच की राह पर चलता रहा।

ज़िन्दगी की दासतां किससे कहें,
हर समय खुद से ही मैं डरता रहा।

न्याय का दामन कभी छोड़ा नहीं,
डाँट अपनों की मगर सहता रहा।

बेखुदी तो थी नहीं मुझ में कभी,
इसलिए गम ही सदा डसता रहा।

हर समय हलकान अपनों से रहा,
अपनी कमियों से सदा लड़ता रहा।