भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

केवल अपने लिए / राजमणि मांझी 'मकरम'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:33, 2 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजमणि मांझी 'मकरम' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं स्वार्थी हूँ
अपनी बीवी की गाँठ खोलकर
लूट लेता हूँ
उसकी बची-खुची अस्मिता

जबरन उधार माँगता हूँ
उस बनिए से
जो रोज़ खीझकर मुझे भगा देता है
उधार देने से इनकार करता है
मगर अपने स्वार्थ के लिए
हाथ जोड़ लेता हूँ
अपनी बेटी को फुसलाकर
उसका सन्दूक माँगकर
चुरा लेता हूँ उसके कुछ सपने
सहेजे हुए कुछ अरमान
और उसके छोटे-से भविष्य पर
पानी फेर देता हूँ

बेटे का गुल्लक फोड़ने में भी
मैं नहीं हिचकिचाता
जहाँ से भी हो, कैसे भी हो
अपना स्वार्थ पूरा कर लेता हूँ
भले ही उसके लिए / कितनी गालियाँ
कितनी ही लानतें सुननी पड़ें
पर अपना स्वार्थ बटोर लेता हूँ।