भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़ामुशी की सदा सा रहता हूं / ध्रुव गुप्त

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:48, 2 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ध्रुव गुप्त |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़ामुशी की सदा सा रहता हूं
आजकल बेपता सा रहता हूं

उनसे हर रोज़ आंख लड़ती है
ख्व़ाब में ही पड़ा सा रहता हूं

घर मेरे दिल में भी रहा न कभी
घर में मैं भी ज़रा सा रहता हूं

कभी तो आप भी आओगे इधर
रहगुज़र में खड़ा सा रहता हूं

मेरे सज़दे सा तुम रहो मुझमें
मैं तुम्हारी दुआ सा रहता हूं

मेरी तलाश कर सको तो करो
इन दिनों मैं हवा सा रहता हूं