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खाली हाथे एका आय, भूललों धन जन पाय / भवप्रीतानन्द ओझा

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खाली हाथे एका आय, भूललों धन जन पाय
अन्तरें हुलाशा रे मन
अन्तरें हुलाशा
कामिनी कांचन लागी, बाढ़त पियासा
रे मन! चारि दिनक् बासा
पानी के बताशा जैसें तन के तमाशा रे मन
चारि दिनक् बासा
माटी पानी अगिनी आर पवन सहित चार
पंचम आकाशा
रे मन! पंचम आकाशा
ताहि से गठित देहा तेकरो कि आशा रे मन
तब लागि सुत नारी, वित्त ओ महल भारी
जब लागि श्वासा
रे मन! जब लागि श्वासा
देतो रे! कंचन काया, जारी कें हुताशा रे मन
भवप्रीता कहै सार, यातायात बारम्बार
बांधन करम पाशा
रे मन! बांधन करम पाशा
काली के चरण ध्यानें छुटै जनम त्रासा रे मन।