भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जुदिथ बुचानिन और मेरे बीच / विष्णुचन्द्र शर्मा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:55, 17 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णुचन्द्र शर्मा |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जुदिथ ने कहा:
सागर है बर्न्स का कवि!
मोहक है बर्न्स की भाषा!
रोज बजा करती है बर्न्स की लोकधुन
पूरे स्कॉट में!

मेरा, कवि खोजता रहा:
कहाँ कहाँ बर्न्स की प्रेमिका है!
कहाँ कहाँ कविता के बर्न्स की!
बुचानिन के कहा:
बर्न्स का संगीत हर जवान युवती को नचाता है।
बर्न्स का संगीत बूढ़ी आँखों में भी सिम्फनी बजाता है।

मैंने कहा:
बर्न्स मेरा यात्री है
सम्मोहक!

-3.6.86