भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो हमारा खून पीने आये थे / मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:34, 19 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुज़फ़्फ़र हनफ़ी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो हमारा खून पीने आये थे
उन को भी दातों पसीने आये थे

पड़ गया ग़ैरत का लंगर पाऊँ में
गौद में लेने सफ़ीने आये थे

हसरतो के मक़बरे में दफ़न हूँ
मेरे खावाबों में ख़ज़ीने आये थे

सर पे इतना बोझ केसे अगया
हम यहाँ दो दिन को जीने आये थे

फूल पर आये थे हम जैसे बबूल
चंद अयसे भी महीने आये थे

दिल पशेमान था न आंसूं आंखं में
शैख़ जी मके मदीने आये थे