भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धन का घमंड प्यारे मन से तू दूर कर / महेन्द्र मिश्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:56, 21 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)
धन का घमंड प्यारे मन से तू दूर कर,
दउलत खजाना माल यहीं छोड़ जाना है।
थोड़ी-सी जिन्दगी में सीताराम ध्यान करो,
जहाँ से तू आया मूढ वोही घर जाना है।
हुज्जत लड़ाई कुछ करने को काम नहीं,
नाहक में सबसे तू बैर कर ठाना है।
द्विज महेन्द्र लाखन में एक बात कही जाय,
काहू को सताओ नहीं अंत मर जाना है।