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धूप एक लड़की है / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र

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धूप
पार- जंगल के राजा की
  लड़की है
 
झरनों में मुँह धोकर
रोज़ सुबह आती है
परियों के साथ
नदी-तीर पर नहाती है
 
पेड़ों के साथ
कभी छुटकी है, बड़की है
 
हँसती है बार-बार
ख़ुशबू के टीले पर
उजली मुसकानों से
भर देती घर-बाहर
 
रात भर
अकेले में सीने धड़की है