भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बताओ तो / असंगघोष

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:42, 14 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=असंगघोष |अनुवादक= |संग्रह=मैं दूँ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हे नर श्रेष्ठ!
तुम और तुम्हारा समुदाय
चौराहे पर मरे पड़े
सांड़
बिजली के तार से चिपक मरे
बंदर की ‘चकडोल’
कीर्तन करते, मंजीरे बजाते निकालने में
खुद ही
खूब गौरवान्वित होते हो, और
रास्ते में पड़ी
लावारिस इंसानी लाश देख
अपना मुँह बिचकाते
दो रुपया फेंक आगे बढ़ जाते हो

तुम्हें यह बर्ताव
तुम्हारा
कौन-सा धर्मग्रन्थ
सिखलाता है?