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बरखा में नाव-तले साये / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र

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बरखा के
भीगे दिन आये बरखा के
आओ, चलें पूजें जल-देवता
 
गीली पगडंडी पर
छाप मेंहराजा के पाँवों की
भरी नदी
खोज-खबर लेती है
मछुओं के गाँवों की
 
बरखा के
काले घन छाये बरखा के
आओ, चलें पूजें जल-देवता
 
अलसाई खिड़की को
थपकी दी रेशमी फुहारों ने
लहरों को चूम लिया
झुककर
पगली पतवारों ने
 
बरखा के
नव-तले साये बरखा के
आओ, चलें पूजें जल-देवता