भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बानी-ए-जोर-ओ-जफ़ा हैं सितम-ईजाद / 'अमानत' लखनवी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:12, 29 मार्च 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='अमानत' लखनवी }} {{KKCatGhazal}} <poem> बानी-ए-जोर-...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बानी-ए-जोर-ओ-जफ़ा हैं सितम-ईजाद हैं सब
राहत-ए-जाँ कोई दिल-बर नहीं जल्लाद हैं सब

कभी तूबा तेरे क़ामत से न होगा बाला
बातें कहने की ये ऐ ग़ैरत-ए-शमशाद हैं सब

मिज़ा ओ अबरू ओ चश्म ओ निगह ओ ग़म्ज़ा ओ नाज़
हक़ जो पूछो तो मेरी जान के जल्लाद हैं सब

सर्व को देख के कहता है दिल-बस्ता-ए-ज़ुल्फ़
हम गिरफ़्तार हैं इस बाग़ में आज़ाद हैं सब

कुछ है बे-हुदा ओ नाक़िस तो 'अमानत' का कलाम
यूँ तो कहने को फन-ए-शेर में उस्ताद हैं सब