भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ कहकै नै पूज्या करते करदी आज पराई क्यूँ / विरेन सांवङिया

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:17, 18 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विरेन सांवङिया |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माँ कहकै नै पूज्या करते करदी आज पराई क्यूँ।
अमृत प्यावण आली की ना होती मर्म दवाई क्यूँ॥

नव आगमन करकै घर मै पैर पखारे जाँ थे।
पहली रोटी काढ गऊ की सब पाछै रोटी खाँ थे।
पित्र भोज करा मावस नै पायां पूजे जाँ थे।
मृतक गऊ की मुक्ति खातर भंडारा के राह थे।
यो आदर मान भूल गए और भूले करणी भलाई क्यूँ॥

वेद शास्त्र पुराण कहैं के के आनंद उपहार दिया।
सूरा धेनू बणी नंदनी घड़ी घड़ी अवतार लिया।
33 करोङ देवता सोहे सब नक्षत्र स्वीकार किया।
पाँच पदार्थ तन तै उपजे अमृत सा आहार दिया।
पुन के बदले पाप करण की इब उल्टी रीत चलाई क्यूँ॥

36 लाख चंदा करकै गऊओं उपर लाया था।
लख्मीचंद नै जीवन का यो पुण्य खूब कमाया था।
360 गऊ पूजन करकै एक पावन पर्व मनाया था।
इब हरफूल सिंह नै याद करैं जिनै गऊ हत्था तुङवाया था।
माँ मान कै मान गिरा दिया इब जा सै कदर घटाई क्यूँ॥

श्याम रूप मै गोकुल के म्हा हर नै गऊ चराई थी।
गऊआं कारण धर्मधरा पै उतरी गंगे माई थी।
ऋषि मुनियों नै गौसेवा कर देव साधना पाई थी।
गुरू कँवरपाल नै विरेन सिंह तै या पावन राह दिखाई थी।
सांवङिया नै नम नैनो तै आज करणी पङी कविताई क्यूँ॥