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मैं न बनूँगा दादा जैसा / गिरिजादत्त शुक्ल 'गिरिश'

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क्या कहती है माँ, दादा के
जितना बड़ा कभी हूँगा!
जो हो अपने को, उन जैसा
कभी न होने मैं दूँगा!
नहीं खेलते कभी खिलौने,
कलम चलाते रहते हैं!
क्या रखा है इन खेलों में,
हँसी उड़ाके कहते हैं!
और बता दो मेरी अम्माँ,
मुझे गोद लेगी कैसे!
सच कहता हूँ मैं न बनूँगा,
दादा हैं मेरे जैसे!