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लटपटी पाग सिर साजत उनींदे अंग / शृंगार-लतिका / द्विज

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मनहरन घनाक्षरी
(ऋतुराज के दर्शनार्थ उत्सुकतापूर्वक गमन)

लटपटी पाग सिर साजत उनींदे अंग, ’द्विजदेव’ ज्यौं-त्यौं कै सँभारत सबै बदन ।
खुलि-खुलि जाते पट बायु के झकोर भुजा, डुलि-डुलि जातीं अति आतुरी सौं छन-छन ॥
ह्वैं कैं असवार मनोरथ ही के रथ पर, ’द्विजदेव’ होत अति आनँद-मगन मन ।
सूने भए तन, कछु सूनेई सु मन, लखि सूनी सी दिसान, लख्यौ सूनेई दृगन बन ॥९॥