भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विवाह पूर्व बेटी का वर विचार / पँवारी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:57, 29 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=पँवारी |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पँवारी लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

चौका बठी बारी दुल्हिन ओ
बाबुल से अरज करे।
अच्छा घर दे जो बाबुल जी
चान्दी-सोन्ना हम पहिन्हे।।


बाबुल-

बेटी लिल्लोड़ी घोड़ी पलानी
सोन्ना-चाँदी हमऽ लेनऽ चल्या
बाटऽ मऽ मिल गया साहिबन रे
साजन तुम कहाँ रे चल्या।

बाबुल-

हम घरऽ कन्या कुँआरी
हम सोन्ना-चाँदी लेनऽ चल्या।


वर पक्ष के जवाब -

फिर जाओ साजन, फिर जाओ
सोन्ना-चाँदी हम लाहीं।
तुम हमखऽ सिरप बेटी देनू
हम तुम्ह खऽ सोन्ना-चाँदी दीहीं
फिर जाओ साजन, फिर जाओ
सोना चाँदी हमऽ दीहीं।