भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संकित हिये सों पिय अंकित सन्देशो बांच्यो / गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:12, 23 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' }} <poem> संकि...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

संकित हिये सों पिय अंकित सन्देशो बांच्यो,
आई हाथ थाती-सी सनेही प्रेमपन की ।
नीलम उधर लाल ह्वै कै दमकन लागे,
खिंच गई मधु रेखा मधुर हँसने की ।।
स्याम घन सुरति सुरस बरसन लागो,
वारें आस मोती, आस पूरी अँखियन की ।
माथ सों छुवाती सियराती लाय लाय छाती,
पाती आगमन की बुझाती आग मन की ।।