भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साथ मुझको तुम्हारा मिले न मिले / सलीम रज़ा रीवा
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:27, 6 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सलीम रज़ा रीवा |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हमसफ़र तुम सा प्यारा मिले न मिले
साथ मुझको तुम्हारा मिले न मिले
इश्क़ का कर दे इज़हार तन्हा है वो
ऐसा मौक़ा दुबारा मिले न मिले
साँस बनकर रहो धड़कनों में मेरी
मुझको जन्नत ख़ुदारा मिले न मिले
जी ले खुशिओं की पतवार है हाँथ में
बहरे ग़म में किनारा मिले न मिले
मां की शफ़क़त जहाँ में बड़ी चीज़ है
ये मोहब्बत की धारा मिले न मिले
वो भी होते तो आता मज़ा और भी
फिर सुहाना नज़ारा मिले न मिले
आज जी भर के दीदार कर ले "रज़ा"
चाँद का ये नज़ारा मिले न मिले