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सुघर सलोना रूप लुभाता नँदलाला / रंजना वर्मा

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सुघर सलोना रूप लुभाता नँदलाला।
झलक दिखाकर चित्त चुराता नँदलाला॥

चपल अलक चंचल घुँघराली में उलझा
हृदय भाव रहता सुलझाता नँदलाला॥

मधुर मुरलिया की धुन मतवाली सुन कर
भुला देह मन दौड़ लगाता नँदलाला॥

करे अनोखे खेल नये सङ्ग ग्वालों के
सदा गोपियों को भरमाता नँदलाला॥

उठे तरंग निराली मन में जब हरि के
गिरा मटुकिया चीर भिगाता नँदलाला॥

चटक चाँदनी जब भू का आँचल चूमे
शरद पूर्णिमा रास रचाता नँदलाला॥

कभी न होता द्वार बन्द प्रभु के घर का
स्वजन वृन्द सँग लाड़ लड़ाता नँदलाला॥