भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमारे काम न आई कबू बफादारी / नवीन सी. चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:29, 1 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हमारे काम न आई कबू बफादारी।
हमारे संग हमेसा रही है लाचारी ॥
बतामें कों'नें कि सब तौ समझ न पामंगे।
हमें डरान लगी है हमारी खुद्दारी ॥
दवा नें काम कियौ तब हमें समझ आयौ।
कि कौन-कौन के हक में रही है बीमारी॥
हमें बचाने हे पुरखन के सन्सकार मगर।
बनाय डारौ समय नें हमें हू ब्यौपारी॥
नयी हवा कों पुरानी महक चखानी है ।
चलौ 'नवीन' चतुर्दिक लगामें फुलबारी॥