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हो धर्म पुन्न करणा चाहिए / दयाचंद मायना

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हो धर्म पुन्न करणा चाहिए
नामा कट्ठा करकै ना धन, धरणा चाहिए...टेक

कंजूसा के धोरै नामा बन्द हवालात म्हं
फिरता रहणा चाहिए नामा शहर कस्बे देहात म्हं
बाबू जी की जेब मैं और मजदूरां के हाथ म्हं
अलबल में तै नामा चाहिए, दानियां के साथ म्हं
देश और परदेश नामा, जा चमकै बिलात म्हं
दसवां हिस्सा लाणा चाहिए, धर्म और खैरात म्हं
थोड़ा-थोड़ा पेट सभी का भरणा चाहिए...

पशुआं खातिर ताल खुदा दे, नकसा जग से ज्यारा हो
दोहरी दे खुदाई जब, मजदूरां का गुजारा हो
मोरां खातिर चुग्गा-पानी, गऊओं खातिर चारा हो
जंगल के म्हां मंगल बालम सुर्ग का द्वारा हो
कुआं, बाग, धर्मशाला, एक साधुआं का ढारा हो
आए, गए अतिथि खातर, भोजन प्रबन्ध सारा हो
करड़ा करकै गात बात पै, मरणा चाहिए...

धर्म की बताई बालम, चोवे के मां नीम हो
धर्म के अगाड़ी पाप, छोड़ जा सै सीम हो
क्यूं खाओ सो दुख का टुकड़ा, सुख का भोजन जीम हो
बे-वारिस बच्चों की खातिर, विद्यालय की तालीम हो
लिख-पढ़कर होशियार बच्चा, डॉक्टर, हकीम हो
टुर्नामेंट, रेस मैं जीतै, दूर-दूर की टीम हो
बणकै फर्स्ट प्लेर मुल्क मैं, फिरणा चाहिए...

देश के मजदूरों का कुछ चाहिए सै इन्तजाम हो
सबकी खातिर हिल्ला रोजी, करणे खातिर काम हो
कमर कसी तो ढील किसी, तेरी मुट्ठी के मैं दाम हो
गऊशाला के दरवाजे पै, तेरा पत्थर के मैं नाम हो
आते-जाते पढ़ैं मुसाफिर, लिखा राम-राम हो
धर्म का प्रचार सारै, शहर, कस्बे, गाम हो
‘दयाचन्द’ तेरा शीश, गुरु के चरणा चाहिए