भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अंतराल / वाज़दा ख़ान
Kavita Kosh से
अन्तर्मन में रचा संसार और
बाह्य आवरण का संसार
न जाने क्यों अलग-अलग
ध्रुव बन जाते हैं
फिर तादातम्य स्थापित करने के
प्रयास में निरन्तर
अन्तराल ही बढ़ाते जाते हैं ।