भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आग हो जाओ, हवाओ / रामकुमार कृषक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आग हो जाओ, हवाओ
आग !

यह सड़न / सीलन
समय
रोगों भरा,
और इसमें
गर्भ से बाहर जो आकर
रेंगता
वह अधमरा,

ऊँघता है जाग !

यह घुटन / सुलगन
धुआँ
सहता धुआँ
और इसमें
खोपड़ी से पेट को जो
जोड़ता
वह टेंटुआ,

डालता है झाग !

5-10-1976