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इतने गुमान / सुदीप बनर्जी
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इतने गुमान
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रचनाकार | सुदीप बनर्जी |
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प्रकाशक | राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, 2/38, अंसारी मार्ग, दरियागंज,नई दिल्ली-110002 |
वर्ष | 1997 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविता |
विधा | |
पृष्ठ | 90 |
ISBN | 81-7119-310-2 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- उतना कवि तो कोई भी नहीं / सुदीप बनर्जी
- आइने में उसकी हँसी / सुदीप बनर्जी
- मलबा / सुदीप बनर्जी
- उंगलियाँ भूल आई हूँ / सुदीप बनर्जी
- धीरे-धीरे दरकिनार होते / सुदीप बनर्जी
- नदियाँ मेरे काम आईं / सुदीप बनर्जी
- नमस्कार के मर्म में है उदासी / सुदीप बनर्जी
- तुम्हे पुकारते हुए / सुदीप बनर्जी
- इतना सब कुछ करने को / सुदीप बनर्जी
- इतना औसत समय / सुदीप बनर्जी
- अब तक जितना जीवन / सुदीप बनर्जी
- ऐश्ववर्य तो तुम्हें नहीं देगा यह / सुदीप बनर्जी
- जो बच्चे खेलते नहीं / सुदीप बनर्जी
- पता नहीं / सुदीप बनर्जी
- अगर तुम यहाँ पर होते / सुदीप बनर्जी
- इतने उजाले में / सुदीप बनर्जी
- बैलाडीला / सुदीप बनर्जी
- ध्रुवतारा / सुदीप बनर्जी
- ऐसी अगर रात / सुदीप बनर्जी
- अथाह में / सुदीप बनर्जी
- वह तो जीवित उतनी ही / सुदीप बनर्जी
- उसके भी तो एक अन्तरंग / सुदीप बनर्जी
- उसके घमंड से निपटना होगा एक दिन / सुदीप बनर्जी
- वक़्त के आइने में उदास शहर / सुदीप बनर्जी
- वे भी कोई इतने अलहदा नहीं / सुदीप बनर्जी
- उसके चुप रहने से बात बनती / सुदीप बनर्जी
- कितने ईश्वर प्रतिद्वन्द्वी / सुदीप बनर्जी
- तालाब और पहाड़ियाँ / सुदीप बनर्जी
- शहर की रूह / सुदीप बनर्जी
- यह एक सिलसिला शालीन है / सुदीप बनर्जी
- उनके अंधेरे में / सुदीप बनर्जी
- पहले जलसे में आए वो / सुदीप बनर्जी
- हम सभी तब / सुदीप बनर्जी
- मैंने सोचे कई नाम / सुदीप बनर्जी
- सुबह अब आसान नहीं / सुदीप बनर्जी
- उसके सुख़न में थोड़ा सा अज़ीब / सुदीप बनर्जी
- ख़ाकनशीं सारे अभिमान / सुदीप बनर्जी
- वह तो बैठी, वहीं खिड़की पर / सुदीप बनर्जी
- टिमटिमाती बत्तियों से / सुदीप बनर्जी
- समय का फेर / सुदीप बनर्जी
- खटखटाने से उसकी नब्ज़ें दुखतीं / सुदीप बनर्जी
- कोई विचार, कुछ भी तो बाक़ी नहीं / सुदीप बनर्जी
- आँखों के भीगने से / सुदीप बनर्जी
- सबके आख़िर में है वसन्त/ सुदीप बनर्जी
- उधर सड़क के नीचे सुरंगें हैं / सुदीप बनर्जी
- अब कोई रात के अँधेरे में / सुदीप बनर्जी
- कादम्बरी / सुदीप बनर्जी
- शकुन्तला / सुदीप बनर्जी
- उर्वशी / सुदीप बनर्जी
- सूनी लम्बी सड़क पर / सुदीप बनर्जी
- अभी मेरे घर में जो आया है / सुदीप बनर्जी
- वहाँ तो अब भी इन्द्रावती / सुदीप बनर्जी
- तुम्हारे मन में तुम्हारा अद्वितीय जागृत / सुदीप बनर्जी
- अगर ठीक से तय कर सकता / सुदीप बनर्जी
- कितनों ने उपकृत किया / सुदीप बनर्जी