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एक भूली सी दास्ताँ हम थे / रंजना वर्मा

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एक भूली सी दास्ताँ हम थे
पूछ मत ये कि कल कहाँ हम थे

क्या अजब सर पे था क़हर बरपा
कह रहे थे वो बेजुबाँ हम थे

था जमीं को बना लिया बिस्तर
किससे कहते कि बे मकाँ हम थे

था किसी और की ज़रूरत तू
बेवजह ही तो दरमियाँ हम थे

माँगते थे कोई निशानी तुम
खुद तेरे प्यार का निशाँ हम थे

हम किसी और को सताते क्या
दुश्मनों पे भी मेहरबाँ हम थे

दिल का यूँ टूटना ही था लाज़िम
हाँ तेरी चाह का जहाँ हम थे