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ऐसा जीना तो है सजा कोई / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
ऐसे जीना तो सज़ा है कोई
जैसे जीता है हाशिया कोई
नाक की सीध में चले रहिए
मंज़िलों का नहीं पता कोई
यह सियासत भी खेल जैसी है
कोई राजा बना, प्रजा कोई
पतझरों का निकल गया मैसम
ठूँठ होने लगा हरा कोई
देख लेना निकल ही आएगा
इससे आगे भी रास्ता कोई
पद-प्रतिष्ठा शराब जैसी है
हमपे छाने लगा नशा कोई
सारी दुनिया से मिल लिए लेकिन
एक ख़ुद से न मिल सका कोई.