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कभी मुझ पर कभी हालात पे हँस देते हो / कांतिमोहन 'सोज़'

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कभी मुझ पर कभी हालात पे हँस देते हो ।
कैसे दाना हो कि हर बात पे हँस देते हो ।।

दुश्मनी तुमसे निभाएँ तो निभाए न बने
और तुम प्यार की सौग़ात पे हँस देते हो ।

हँसना अच्छा है मगर उसकी भी हद है जानां
तुम तो इंसान के जज़्बात पे हँस देते हो ।

ऐसा हँसना भी मुज़िर ऐसी हँसी भी ज़ालिम
कभी दिल्ली कभी गुजरात पे हँस देते हो ।

उठके इस दर से कहां जाय सवाली आख़िर
ऐसे मासूम सवालात पे हँस देते हो ।

एक मैं हूँ कि जिसे दिन भी रुलाता है लहू
एक तुम हो कि सियह रात पे हँस देते हो ।

सोज़ तुममें तो ये खामी न कभी थी पहले
है कोई बात कि हर बात पे हँस देते हो ।।