भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कान्ति धवल कर्पूर-कुंद-सम / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग आनन्द-ताल त्रिताल)

कान्ति धवल कर्पूरकुन्द-सम पूर्ण-चन्द्र-‌उज्ज्वल आनन।
 वीणा पुस्तक-माला-धारिणि, परम सुशोभित दिव्य वसन॥
 षोडशदल-कमलासन सुन्दर हंसवाहिनी कल्याणी।
 तम-नाशिनि सद्‌‌बुद्धि-प्रदायिनि जय-जय जयति देवि वाणी॥