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क्षण / वाज़दा ख़ान
Kavita Kosh से
तुम मुझसे कुछ मत कहो
ढूँढ़ लूँगी मैं स्वयं
गोद में तुम्हारी सुख के कुछ क्षण जो परिभाषित करेंगे मुझे
पुनः एक नई शक्ति और उर्जा से
फिर से चलने लगूँगी मैं
जैसे बीती सदियों में तमाम रात
चलती रही हूँ निरन्तर
चलते-चलते, धीमे-धीमे दौड़ने लगूँगी, फिर
और तेज़ी से दौड़ने का प्रयास करूँगी
छोटे-छोटे असंख्य सितारों के बीच
रास्ता बनाते हुए उस सूरज
के पीछे, जो मेरी नज़र के सामने से
भागता हुआ तेज़ी से
ओझल हो रहा है ।