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गीतावली उत्तरकाण्ड पद 31 से 40 तक/पृष्ठ 5
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मुनिबर करि छठी कीन्हीं बारहेङ्की रीति |
बन-बसन पहिराइ तापस, तोषि पोषे प्रीति ||
नामकरन सुअन्नप्रासन बेद बाँधी नीति |
समय सब रिषिराज करत समाज साज समीति ||
बाल लालहिं, कहहिं करहैं राज सब जग जीति |
राम-सिय-सुत, गुर-अनुग्रह, उचित, अचल प्रतीति ||
निरखि बाल-बिनोद तुलसी जात बासर बीति |
पिय-चरित-चित-चितेरो लिखत नित हित-भीति ||