गीतावली लङ्काकाण्ड पद 21 से 23 तक/पृष्ठ 2
(22)
राज्याभिषेक
रागजैतश्री
रन जीति राम राउ आए |
सानुज सदल ससीय कुसल आजु, अवध आनन्द-बधाए ||
अरिपुर जारि, उजारि, मारि रिपु, बिबुध सुबास बसाए |
धरनि-धेनु, महिदेव-साधु, सबके सब सोच नसाए ||
दई लङ्क, थिर थपे बिभीषन, बचन-पियूष पिआए |
सुधा सीञ्चि कपि, कृपा नगर-नर-नारि निहारि जिआए ||
मिलि गुर, बन्धु, मातु, जन, परिजन, भए सकल मन भाए |
दरस-हरस दसचारि बरसके दुख पलमें बिसराए ||
बोलि सचिव सुचि, सोधि सुदिन, मुनि मङ्गल-साज सजाए |
महाराज-अभिषेक बरषि सुर सुमन निसान बजाए ||
लै लै भेण्ट नृप-अहिप-लोकपति अति सनेह सिर नाए |
पूजि, प्रीति पहिचानि राम आदरे अधिक, अपनाए ||
दान मान सनमानि जानि रुचि, जाचक जन पहिराए |
गए सोक-सर सूखि, मोद-सरिता-समुद्र गहिराए ||
प्रभु-प्रताप-रबि अहित-अमङ्गल-अघ-उलूक-तम ताए |
किये बिसोक हित-कोक-कोकनद लोक सुजस सुभ छाए ||
रामराज कुलकाज सुमङ्गल, सबनि सबै सुख पाए |
देहिं असीस भूमिसुर प्रमुदित, प्रजा प्रमोद बढ़ाए ||
आस्रम-धरम-बिभाग बेदपथ पावन लोग चलाए |
धरम-निरत, सिय-राम-चरन-रत, मनहु राम-सिय-जाए ||
कामधेनु महि, बिटप कामतरु, कोउ बिधि बाम न लाये |
ते तब, अब तुलसी तेउ जिन्ह हित सहित राम-गुन गाये ||