भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जंगल / वाज़दा ख़ान
Kavita Kosh से
तमाम घने जंगलों में,
इक जंगल मैं भी हूँ, न काटे जाने
के प्रयास में प्रयत्नशील
दोनों हाथों से निरन्तर
नन्हीं-नन्हीं बाड़ लगाने का
प्रयास, सफ़लता !
कौन जाने ?