भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब से कोलोनी मुहल्ले हो गये / अश्वनी शर्मा
Kavita Kosh से
जब से कालोनी मुहल्ले हो गये
लोग सब लगभग इकल्ले हो गये।
दोस्ती हमने इबादत मान ली
बस कई इल्ज़ाम पल्ले हो गये।
भोक्ता, कर्ता सुन भगवान है
लोग महफिल के निठल्ले हो गये।
ज़िक्र की पोशीदगी बढ़ने लगी
बात में बातों के छल्ले हो गये।
बेअदब हो चांद फिर मंजूर है
अब तो तारे भी पुछल्ले हो गये ।