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दामिनी / जगदीश गुप्त
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दामिनी !
किन्तु प्रिय के सजल श्यामल
पंथ की अनुगामिनी !
लाल मेंहदी से रचे कर,
युगल पग पूरित महावर,
इन्द्रधनुषी मौर भूषित
जलद की सहगामिनी !
दामिनी !
नूपुरों में बून्द के स्वर,
किंकिणी से ध्वनित अम्बर,
थिरकती फिरती क्षितिज के
छोर तक अविरामनी !
दामिनी !
सुरमई बादल-कलश भर
ढालती प्यासी धरणि पर,
गगनचारी, सलिल-बाला,
प्रिय - मिलन-क्षण-कामिनी !
स्वर्ण-रंजित दामिनी !