भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल ने तुझसे रिहाई मांगी है / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल ने तुझसे रिहाई मांगी है
दूर हो जा जुदाई मांगी है
बंद कर ले ज़बान तू अपनी
तुझसे किसने सफाई मांगी है
हमको रातों से कुछ गिला ही नही
हमने तो रोशनाई मांगी है
गर्मियों में बस एक चादर और
शर्दियों में रज़ाई मांगी है
यूँ नहीं उठ रहे हैं महफ़िल से
हमने थक कर बिदाई मांगी है
उसने चूमी नहीं कटी ऊँगली
जिससे हमने दवाई मांगी है