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पद 131 से 140 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 8

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पद (136-7) से (136-8) तक

(136-7)
जोवन जुबती सँग रँग रात्यो।
तब तू महा मोह-मद मात्यो।।

ताते तजी धरम-मरजादा।
बिसरे तब सब प्रथम बिषादा।।

बिसरे बिषाद, निकाय-संकट समुझि नहिं फाटत हियो।
फिरि गर्भगत-आवर्त संस्तिचक्र जेहि होइ सोइ कियो।

कृमि -भस्म-बिट-परिनाम तनु, तेहि लागि जग बैरी भयो।
परदार, परधन, द्रोहपर, संसार बाढ़ै नित नयो।

(136-8)
 
देखत ही आयी बिरूधाई।
जो तैं सपनेहुँ नाहिं बुलाई।।

ताके गुन कछु कहे न जाहीं।
सो अब प्रगट देखु तनु माहीं।।

सिर-कंप , इन्द्रिय -सक्ति प्रतिहत, बचन काहु न भावई।
गृहपालहूतें अति निरादार, खान-पान न पावई।

ऐसिहु दसा न बिराग तहँ,तृष्णा -तरंग बढ़ावई।।