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प्रार्थना होता जीवन / प्रेमशंकर रघुवंशी
Kavita Kosh से
मत उलझो
जैसे कि
निश्चिंत होने के बावजूद
उलझते शंका में
या अनुभव करते
शोर-शराबों में
अथवा गंतव्यों की तरफ़ चलते
बियाबान जंगलों में
सुलझना चाहो तो
इस तरह सुलझो
जैसे कि रुई का रेशा-रेशा
पोनी से वस्त्र बनने तक
या कि भाप से बादल
बादल से बरसता पानी
या प्रणय सिंध में
नहाते विकार
अथवा ध्वनि से स्वर
स्वर से प्रार्थना होता जीवन।