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रसिक रीझिहैं जानि / शृंगार-लतिका / द्विज
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सोरठा
(कवि संतोष-वर्णन)
रसिक रीझिहैं जानि, तौ ह्वै है कबितौ सुफल ।
न तरु सदाँ सुखदानि, श्री राधा-हरि कौ सुजस ॥६५॥
॥इति प्रथम सुमनम्॥