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|रचनाकार= श्रद्धा जैन
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ऐसा नहीं कि हमको, मोहब्बत नहीं मिली
थी जिसकी बस जैसी आरज़ू वही, दौलत थी वो चाहत नहीं मिली देखे अगर करे मेरे सेदौलत है, रश्क यार घर है, ख़्वाब हैं, हर ऐश है मगरफिर भीये लग रहा है कि क़िस्मत नहीं मिलीसब कुछ मिला रोका बहुत मगर वही, क़िस्मत वो मुझे छोड़कर गएइन आंसुओं को आज भी क़ीमत नहीं मिली इस ज़िंदगी में ख़्वाब-ओ-ख़यालात भी तो हैंहमको ये सोचने की भी मोहलत नहीं मिली हालाँकि सारी उम्र ही गुज़री है उनके साथ“श्रद्धा” मेरा नसीब कि क़ुरबत नहीं मिली
घर को सजाते कैसे, ये लड़की हैं सीखती
ज़िंदा रहे तो कैसे, नसीहत नहीं मिली
क़िस्सा सुनाएँ किसको यहाँ, तेरे ज़ॉफ का
कहते हैं हम सभी से, कि आदत नहीं मिली
देखा गिरा के खुद को ही, क़दमों में उसके भी
“श्रद्धा” नसीब में तुझे क़ुरबत नहीं मिली
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