भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गोरी के जोबना / बुन्देली

7 bytes added, 21:25, 5 फ़रवरी 2011
|भाषा=बुन्देली
}}
<poem>
गोरी के जोबना हुमकन लगे,
 
जैसे हिरनियों के सींग ।
 
मूरख जाने खता फुनगुनू,
 
वे तो बाँट लगावे नीम ।
 
'''भावार्थ'''
--'गोरी के उरोज उभरने लगे,
 
हिरनी के सींगों समान
 
मूर्ख उन्हें फोड़े-फुन्सी समझ रहा है
 
और वह उन पर नीम के पत्ते रगड़ कर लगा रहा है'
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,118
edits