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{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दाग़ देहलवी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
रू-ए- अनवर<ref>दमकता हुआ चेहरा</ref> नहीं देखा जाता
देखें क्योंकर नहीं देखा जाता
रश्के-दुश्मन<ref>शत्रु की ईर्ष्या</ref> भी गवारा<ref>स्वीकार</ref> लेकिन
तुझको मुज़्तर<ref>परेशान</ref> नहीं देखा जाता
दिल में क्या ख़ाक उसे देख सके
जिसको बाहर नहीं देखा जाता
तौबा के बाद भी ख़ाली-ख़ाली
कोई साग़र<ref>जाम</ref> नहीं देखा जाता
क्या शबे-वादा हुआ हूँ बेख़ुद<ref>बेसुध</ref>
जानिबे-दर<ref>दरवाज़े की ओर</ref> नही देखा जाता
मुख़्तसर<ref>संक्षेप में</ref> ये है अब कि ‘दाग़’ का हाल
बन्दापरवर नहीं देखा जाता
</poem>
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रू-ए- अनवर<ref>दमकता हुआ चेहरा</ref> नहीं देखा जाता
देखें क्योंकर नहीं देखा जाता
रश्के-दुश्मन<ref>शत्रु की ईर्ष्या</ref> भी गवारा<ref>स्वीकार</ref> लेकिन
तुझको मुज़्तर<ref>परेशान</ref> नहीं देखा जाता
दिल में क्या ख़ाक उसे देख सके
जिसको बाहर नहीं देखा जाता
तौबा के बाद भी ख़ाली-ख़ाली
कोई साग़र<ref>जाम</ref> नहीं देखा जाता
क्या शबे-वादा हुआ हूँ बेख़ुद<ref>बेसुध</ref>
जानिबे-दर<ref>दरवाज़े की ओर</ref> नही देखा जाता
मुख़्तसर<ref>संक्षेप में</ref> ये है अब कि ‘दाग़’ का हाल
बन्दापरवर नहीं देखा जाता
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