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एक पल तअल्लुक का वो भी सानेहा जैसा

हर खुशी थी गम जैसी हर करम सज़ा जैसा


आज मेरे सीने में दर्द बनके जागा है

वह जो उसके होंठों पर लफ्ज़ था दुआ जैसा


आग मैं हूं पानी वो फिर भी हममें रिश्ता है

मैं कि सख्त काफिर हूं वह कि है खुदा जैसा


तैशुदा हिसो के लोग उम्र भर न समझेंगे

रंग है महक जैसा नक्श है सदा जैसा


जगमगाते शहरों की रौनकों के दीवाने

सांय-सांय करता है मुझमें इक खला जैसा