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18:59, 14 फ़रवरी 2011 एक पल तअल्लुक का वो भी सानेहा जैसा
हर खुशी थी गम जैसी हर करम सज़ा जैसा
आज मेरे सीने में दर्द बनके जागा है
वह जो उसके होंठों पर लफ्ज़ था दुआ जैसा
आग मैं हूं पानी वो फिर भी हममें रिश्ता है
मैं कि सख्त काफिर हूं वह कि है खुदा जैसा
तैशुदा हिसो के लोग उम्र भर न समझेंगे
रंग है महक जैसा नक्श है सदा जैसा
जगमगाते शहरों की रौनकों के दीवाने
सांय-सांय करता है मुझमें इक खला जैसा