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Kavita Kosh से
मेरे गीत तुम्हारे !
ये अभाव के गान,
किसी मानस की आकुल तान ,व्यथा की क्षण-क्षण की अनुभूति ,जहाँ पर आ कर बँधती!बात एक ही मेरी चाहे तेरी ,जो पग-पग पर हारे! मेरे गीत तुम्हारे!*
स्वप्निल पलकें खोल चले
जग के रूखे आँगन में,
वे जीवन के फूल जिन्हों ने
बसने को पतझार चला
जिन साँसोँ के कानन मे!
वे अटके भटके से ,बेबस जीवन के मारे, मेरे गीत तुम्हारे!*
अधरों की मुस्कान,
हृदय का क्रन्दन जहाँ मिलेँगे,
करुणा-सिंचित कथा –कहानीकथा–कहानी,
भले न मुख से फूटे,
उस माटी मे गन्ध-विकल
गीतोँ के फूल खिलेँगे!
अश्रु-हास सुख-दुखमय जीवन
चलता साथ तुम्हारे!
मेरे गीत तुम्हारे !
मेरे स्वर ही मेरा परिचय,
इतना-सा ही नाता,
जगती की क्षणमयता और
समय की लहरोँ मे भी
एक यही सँबँध संबंध जोड़ता मन से मन का नाता!
हार गई जो अपनी बाजी
लिखती नाम तुम्हारे
मेरे गीत तुम्हारे!
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