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Kavita Kosh से
<prepoem>हम जो नीम तारीक राहों में मारे गए ।
तेरे होठों के फूलों की चाहत में
दार की ख़ुश्क टहनी पे वारे गए ।
तेरे हाथों की शम्मों की हसरत में हम जो नीम तारीक राहों में मारे गए ।
दार - फ़ाँसी का तख़्त, तारीक - अंधेरे, नीम - धुधला, कम रोशन
सूलियों पर हमारे लबों से परे
तेरे होठों की लाली लपकती रही ।
तेरी ज़ुल्फों की मस्ती बरसती रही
तेरे हाथों की चाँदी दमकती रही ।
......
जब खुली तेरी राहों में शाम-ए-सितमहम चले आए , लाए जहाँ तक लाए क़दमलबों पर हर्फ़-ए-ग़ज़ल , दिल में क़िन्दील-ए-ग़म ।
अपमा ग़म था गवाही तेरे हुस्न की
देख क़ायम रहे इस गवाही पर क़ायम रहे हम ।</pre>ना-रसाई अगर अपनी तक़दीर थीतेरी उल्फ़त तो अपनी ही तदबीर थीकिस को शिकवा है गर शौक के सिलसिलेहिज्र की क़त्नगाहों से सब जा मिलेक़त्लगाहों से चुनकर हमारे अलम और निकलेंगे उश्शाक़ के क़ाफिलेजिनकी राह-ए-तलब से हमारे क़दममुख़्तसर कर चले दर्द के फासिलेकर चले जिनकी ख़ातिर जहाँगीर हमजाँ गवाँकर तेरी दिलबरी का भरमहम जो तारीक राहों में मारे गए .. ।