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जूनी अर अकारण फाइलां
बोरां में !
'''कविता का हिंदी अनुवाद'''
बड़े शहर में
संकड़े कमरों में
आदमियों के पास
बैठे
सोए
खड़े
आदमी
आदमी
आदमी
जैसे ठूंस-ठूंस कर भरी हो-
पुरानी और बेकार फाइलें-
बोरों में !
'''अनुवाद : नीरज दइया'''
</poem>