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{{KKRachna
|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२
|संग्रह=जब भी वसन्त के फूल खिलेंगे / आलोक श्रीवास्तव-२
}}
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<Poem>
नदी में किसी की छाया है
आकाश में एक उड़ा आंचल
पेड़ों पर टंगा है कोई रंग
दिशाओं में कोई आवाज़
मैं तुम्हें
भूल क्यों नहीं पाता?
</poem>
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|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२
|संग्रह=जब भी वसन्त के फूल खिलेंगे / आलोक श्रीवास्तव-२
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<Poem>
नदी में किसी की छाया है
आकाश में एक उड़ा आंचल
पेड़ों पर टंगा है कोई रंग
दिशाओं में कोई आवाज़
मैं तुम्हें
भूल क्यों नहीं पाता?
</poem>