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पूर्णिमा का चाँद / शमशेर बहादुर सिंह
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|संग्रह=कुछ कविताएँ / शमशेर बहादुर सिंह
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चांद
चाँद
निकला बादलों से पूर्णिमा का।
:
गल रहा है आसमान।
एक दरिया उबलकर पीले गुलाबों का
:
चूमता है बादलों के झिलमिलाते
:
स्वप्न जैसे पाँव।
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अनिल जनविजय
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