Changes

|संग्रह=कुछ कविताएँ / शमशेर बहादुर सिंह
}}
{{KKCatKavita‎}}
<poem>
चांद चाँद निकला बादलों से पूर्णिमा का।: गल रहा है आसमान।
एक दरिया उबलकर पीले गुलाबों का
: चूमता है बादलों के झिलमिलाते: स्वप्न जैसे पाँव।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,749
edits